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कॉलेजों में रैगिंग को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञेय अपराध की श्रेणी में स्थापित किया है। रैगिंग एक असामाजिक, आपराधिक एवं अमानवीय कृत्य है जिसे हर दशा में रोका जाना चाहिए। इस आपराधिक कृत्य को समूल नष्ट करने के उद्देश्य से इसमें संलिप्त विद्यार्थियों के विरुद्ध कठोर दण्डात्मक कार्रवाही की जाती है। इसमें ढ़ाई लाख रुपये तक का अर्थदण्ड भी सम्मिलित है। इसमें दोषी पाये जाने पर विद्यार्थियों के विरुद्ध रैगिंग समिति अपराध के गंभीरता को देखते हुए निम्नलिखित कार्रवाई कर सकती है।
1. प्रवेशार्थी का प्रवेश निरस्त किया जाना।
2. महाविद्यालय से निष्कासन/निलम्बन किया जाना।
3. किसी अन्य संस्थान में प्रवेश लेने से वंचित किया जाना।
4. प्रदत्त शैक्षिक सुविधाओं की वापसी।
5. अपराध की प्रवृत्ति के अनुसार मुकदमा चलाया जाना भी सम्मिलित है।
रैगिंग का तात्पर्य
किसी छात्र/छात्रा को बोलकर लिखकर, संकेत द्वारा, हाव-भाव से या शारीरिक गतिविधियों से क्षति पहुंचाना, मानसिक रूप से प्रताडित करना, भौतिक रूप से कष्ट पहुंचाना नवीन प्रवेशार्थी व कनिष्ठ छात्र/छात्राओं को डराना, धमकाना उन्हें मानसिक आघात पहुंुचाना, हतोत्साहित करना, परेशान करना उनके क्रियाकलापों में गतिरोध उत्पन्न करना तथा उन्हें उन कार्यों को करने के लिये बाध्य करना जिन्हें वे करना नहीं चाहते या शर्मा महसूस करते हैं या जिन्हें करने में उन्हें असहजता अनुभव होती हो या उन्हें मानसिक रूप से कष्ट होता हो इसके अतिरिक्त किसी छात्र/छात्रा को दुष्कृत्य हेतु प्रेरित करना भी इसी अपराध की श्रेणी में आता है।
रैगिंग विरोधक समिति/रैगिंग निरोध दस्ता
माननवीय उच्चतम न्यायालय के पत्र सं0 310/04 ए0आई0ए0 दिनांक 26 फरवरी 2009 तथा 27 मार्च 2009 को दृष्टिगत रखते हुये यू.जी.सी. एवं कुलाधिपति (महामहिम राज्यपाल, उत्तराखण्ड शासन) के निर्देशानुसार महाविद्यालय में भी एक रैगिंग निरोधक समिति (।दजप त्ंहहपदह ब्वउउपजजमम) एवं रैगिंग निरोध दस्ता ( ।दजप त्ंहहपदह ैुनंक) का गठन किया जाता है, जो कि महाविद्यालय परिसर में रैगिंग सम्बन्धी किसी भी प्रकार की गतिविधि पर सख्ती से नजर रखती है तथा ऐसी किसी भी घटना पर कठोरतम कार्रवाई हेतु सबल संस्तुति भी प्रदान करती है।